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प्रेमम : एक रहस्य! (भाग : 17)





ब्लैंक का गुप्त ठिकाना! चारों तरफ लोहे के मोटे-मोटे स्तम्भ लगे हुए थे, हर एक स्तम्भ पर गुप्त कैमरे के साथ स्वचालितबन्दूको की व्यवस्था थी, जिन्हें कंप्यूटर द्वारा कमांड देकर ऑपरेट किया जा सकता था। सभी नकाबपोश अपने अपने कामों में लगे हुए थे, वहीं किनारे एक ओर थोड़ा ऊँचा चबूतरा था, जिसपर सिंहासन जैसा एक विशाल एवं रत्नजड़ित आसन रखा हुआ था। तभी ब्लैंक उस सिंहासन के पास प्रकट हुआ।

आज ब्लैंक बुरी तरह तिलिमिलाया हुआ था, उसकी आज तक की, की गई सभी योजनाओं पर पानी फिर गया था। उसके हाथ से एक सीक्रेट ठिकाना निकल गया, पुलिस का ध्यान आकृष्ट करने के लिए बच्चों के साथ कि गयी निर्ममता बेकार गयी। हालांकि मीडिया आज भी अरुण को ही दोषी मान रही थी मगर उनके पास इसे प्रूफ करने के लिए 'झूठे चिल्लाने' के अलावा कुछ न था। यह उत्तराखंड सरकार की बहुत बड़ी नाकामी बताई जा रही थी मगर.. ब्लैंक को जैसे इन सबसे कोई मतलब नहीं था, उसका गुस्सा सातवें आसमान पर था। उसका भेजा गया माल किसी के द्वारा पकड़ लिया गया, यही नहीं उस ट्रक का नामोनिशान भी मिटा दिया गया। वह देहरादून में हंगामा खड़ा कर मसूरी के रास्ते अपना काम आसानी से कर लेना चाहता था लेकिन आज पहली बार उसकी प्लानिंग फेल हुई थी, इतनी मुश्किल के बाद भी उन ब्लास्ट्स में कोई पुलिसकर्मी हताहत नहीं हुआ था।

"बॉस!" एक नकाबपोश ने ब्लैंक से कहा। ब्लैंक सिंहासन के आसपास चक्कर लगा रहा था। उस नकाबपोश की बात सुनते ही वह अपने स्थान पर खड़े होकर उसको एकटक देखने लगा।

"उस पुलिसिये के बचने के कोई चांसेस नहीं है! वह हमारी आँखों के सामने उस आग में कार सहित कूद गया था।" नकाबपोश ने कहा।

"कौन?" ब्लैंक ने भर्राए हुए स्वर में पूछा।

"वहीं बॉस! जिसने आते ही हमारे उस खबरी को पकड़ लिया था। जिसके बाद आप उससे इंतक़ाम लेना चाहते थे।" उस नकाबपोश ने नरम स्वर में कहा।

"अच्छा तो वो गया? जीते जी आग में! अगर आग से बच भी जाये तो मेरे किये इंतज़ाम से नहीं बचेगा।" ब्लैंक हँसने लगा।

"हम अपना मक़सद और इंतक़ाम कभी अधूरा इंतक़ाम नहीं छोड़ते हैं बॉस!" उस नकाबपोश के स्वर में खुशी छिपी थी।

"आखिरकार एक प्लान तो सफल हुआ, अब हमारे रास्ते का एक बड़ा कांटा निकल चुका है, हमारे पास अधिक समय नहीं है। अब मक़सद पूरा होने में देरी नहीं होना चाहिए।" ब्लैंक ने कहा।

"हम अपने मकसद में कभी देर नहीं करते बॉस!" उस नकाबपोश ने सिर झुकाते हुए कहा।

"किसी भी प्रकार की देरी ब्लैंक को बर्दाश्त नहीं केशन!" ब्लैंक ने उस नकाबपोश से कहा। उसका स्वर अब भी जलते हुए अंगारे के समान लग रहा था। उसका गुस्सा यह जानकर थोड़ा शांत हुआ था कि आखिरकार वह अपने एक मक़सद में तो सफल रहा। इंस्पेक्टर अरुण मारा जा चुका था।

"माल तैयार है सर! बस आपके आदेश का इंतज़ार है!" केशन ने ब्लैंक के सामने झुकते हुए नम्यता से कहा।

"जल्दी करो! अभी मुझे उस शख्स को भी दोज़ख पहुँचाना है जिसने हमारा करोङो का माल हमसे छीन लिया।" ब्लैंक अब भी तनिक नरम न हुआ था।

"हम उसका पता लगा चुके हैं बॉस! वह कोई अनि नाम का लड़का है!" केशन ने अपने फ़ोन से अनि की तस्वीर दिखाते हुए कहा।

"एक लड़का? हमारे ट्रेंड लड़ाकों को हरा पाना एक लड़के के बस की बात नहीं!" ब्लैंक का गुस्सा पढ़ने लगा था।

"वह एक सीक्रेट एजेंट है बॉस!" केशन ने अपनी बात पूरी की।

"ओह तो किसी को हमारे सीक्रेट प्लान के बारे में पता चल चुका है, अब और देरी नहीं कर सकते। रास्ते में जो भी आये सीधे दोज़ख भेज देना। हमारा मक़सद…!"

"हमारा मक़सद…! हम सबसे बड़ा है। पाक है और नसीब-ए-जन्नत का द्वार है।" केशन न नारा लगाते हुए कहा।

"जाओ!" ब्लैंक ने गुर्राते हुए कहा। केशन उसके सामने झुका और फिर मुड़कर वहां से निकल गया।

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"बच्चों के कातिल का पता ढूंढने में असमर्थ उत्तराखंड पुलिस के हाथ लगी एक और बड़ी असफलता!" टीवी पर बड़े बड़े अक्षरों में यही न्यूज़ फ्लैश हो रही थी, और वह एंकर भी यही चिल्ला रहा था। "अपने गुप्त सूत्रों के आधार पर ब्लैक बिल्डिंग जैसी खंडहर के पास गई हुई पुलिस फोर्स बाल बाल बची। इंस्पेक्टर मेघना सहित कुछ पुलिसकर्मी घायल बताए जा रहें है, मगर अफसोस वहां कुछ….!"

"एक मिनट!' एक महिला एंकर ने उसे रोकते हुए कहा।

"क्या हुआ!" वह युवक फुसफुसाया।

"न्यूज़ को बीच में स्थगित करने के लिए क्षमा चाहती हूँ मित्रों मगर एक दिल दहला देने वाली खबर आई है, नरेश रावत जी अब नहीं रहें। कल की रात उनकी आखिरी रात बनकर रह गयी, वे बच्चों के साथ हुए हादसे के बाद अपने घर पहुँचे तो किसी ने उन्हें और उनकी बेटी को बम से उड़ा दिया। यह बहुत अफसोस की बात है कि अब जनता के प्रतिनिधि भी सुरक्षित नहीं बचें हैं, तो फिर पुलिस किसके सुरक्षा की दावा कर रही है। जब नरेश जी जैसे समाजसेवी सुरक्षित नहीं हैं तो जनता कैसे सुरक्षित हो सकती है।" कहते हुए उस महिला की आँखों में आँसू आ गए, चेहरा तमतमा कर लाल हो चुका था। "आइए हम उन दोनों की आत्मा की शांति के लिए दो मिनट का मौन रखें!" कहते ही वह युवती सावधान की मुद्रा में आँखे बंद कर खड़ी हो गयी।

"पुलिस की एक और बड़ी नाकामी! पहले इंस्पेक्टर मासूमों की जान लेता है फिर जनता को समझा-बुझाकर मनाने वाले नेता की हत्या कर दीं जाती है, इस शहर में अब कोई महफूज भी बचा है क्या? इतनी दुखद घटना घट गयी, सारा शहर शोक में डूबा हुआ है, पुलिस खुद पर लानत मनाने के अलावा और क्या कर सकती है?" वह पुरूष एंकर भड़क उठा था, उसका चेहरा गुस्से से लाल था।

"हमें यहां आर्मी प्रोटेक्शन चाहिए, पुलिस की एक के बाद एक इतनी नाकामियों का बोझ हम नहीं सह सकते।" वह पुलिस को कोसते हुए बुरी तरह चिल्लाए जा रहा था।

"हे भगवान! ये क्या हो गया बेटा।" हॉस्पिटल में न्यूज़ देख रहे मेघना के पापा ने कहा।

"आदि इनको बहुत मानता था, वो कहता था कि यही एक नेता है जो वास्तव में नेता कहलाने का हकदार है! वे उसके लिए बड़े भाई की तरह थे, अगर उसे इस वक़्त पता चला तो वो सह नहीं पायेगा।" मेघना की आँखों में आँसू छलक आये।

"समस्या उससे भी बहुत बड़ी हो चुकी है बेटी! पुलिस की जगह आर्मी को लगाने की अपील की जा रही, हो सकता है विपक्ष इसका राजनीतिक लाभ उठाने के लिये राष्ट्रपति शासन की भी मांग करने लगे।" मेघना के पापा बहुत अधिक चिंतित थे।

"ये मुद्दा शुरुआत से ही उलझा हुआ है पापा! बहुत रेस्ट कर लिया अब मुह तोड़ना जरूरी है। वो जो कोई भी है बचेगा नहीं अब..!" मेघना ने खड़े होने की कोशिश की मगर वह लड़खड़ाकर दुबारा गिर गयी।

"सम्भलकर बेटी!" उसके पापा की चीख निकल गयी।

"अब मैं छोटी बच्ची नहीं रही पापा, ये मामूली जख्म मुझे पंगु नहीं बना सकते।" मेघना का लहू खौल रहा था, वह बार-बार खड़े होने की कोशिश कर रही थी मगर पैरों ने जैसे उसका साथ देने से ही इनकार कर दिया था। मेघना दर्द से चीखते हुए दुबारा बेड पर गिर जाती थी।

"तुम खुद को तकलीफ दे रही हो नादान!" मेघना के पापा की आँखों में आँसू छलक उठे।

"मेरी वर्दी, मुझसे भी ज्यादा तकलीफ में है पापा! मैं उसकी चीखों को सुन रहीं हूँ, मैं अब और नहीं बर्दाश्त कर सकती, मुझे पुलिस पर लगे इस कलंक को धोना ही होगा।" मेघना की आँखों में दृढ़ इच्छाशक्ति की झलक दिखाई दे रही थी। वह जबड़े भींचे हुए पुनः खड़े होने की कोशिश करने लगी, दर्द इस बार भी सहने की क्षमता से अधिक था मगर वह इस बार नहीं गिरी, उसके होंठो पर एक मधुर मुस्कान विस्फारित होती चली गयी।

"मेरी बहादुर बच्ची!" उसके पिता के मुख से अनायास ही ये शब्द निकल गए। जिसे सुनकर मेघना की मुस्कान बढ़ गयी, उसने अपनी वर्दी की ओर अपना हाथ बढ़ाया, उसके पापा कमरे से बाहर निकल आये, उनके चेहरे पर एक अजीब सी खुशी की चमक थी।

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अरुण की कार टेढ़े मेढ़े ढलान रास्ते पर बहुत तेजी से नीचे की ओर बढ़ती जा रही थी, अरुण कमाल की फुर्ती से स्टेयरिंग पर अपनी पकड़ बनाये हुए था, कार की रफ्तार तकरीबन 150KM/H के पर हो चुकी थी। अनि आँखे फाड़े उसकी इस बेवकूफी भरी अप्रत्याशित हरकत को देखता रहा।

'ये बन्दा, जो थोड़ी ही देर में खुदा को प्यारा होने वाला है! ये एक पुलिस इंस्पेक्टर हुआ करता था मगर इसकी ऐसी पागलपन भरी हरकतों के कारण पागलखाने भेज दिया गया, जिसके बाद वह पागलखाना भी पागल हो गया और  यह एक दिन मौका पाते ही उस पागलखाने को तोड़कर बाहर निकला और इस खाई में कूद गया।

अगर ऐसा सोच रहे हो तो ऐसा कुछ नहीं है। हमारे प्यारे बर्बादी साहेब! कुछ न कुछ बर्बाद करने में लगे ही रहते हैं। आपके प्यारें हनी-बनी यानी अनि मेरा मलतब मैंने कहा था, मगर मेरी बात सुनता ही कौन है? जालिम दुनिया! देखो मुझे अब उस कार का अंतिम संस्कार देखना पड़ेगा। कितना मुश्किल समय है न! अरे इस प्यारी कार की आत्मा के शांति के लिए दो मिनट का मौन रख लो। मुझे बीच सकड़ पर उतारा था, फिर ये खटारा मिलीं, एक वारियर की इससे बड़ी इज्ज़त.. मेरा मतलब वहीं.. बेइज्जती क्या होगी। मुझे धोखा दिया और खुद किसी की चाल में लपेटें गए, मुझे लगा ही था कोई मछली को चारा दे रहा मगर यहां तो बिचारा शार्क ही चारे के चक्कर में फंस गया। मेरी नहीं सुनते न.. लो अब भुगतो!'

"मुझे इस बचाना ही होगा! पर कैसे?" अनि बहुत बड़े असमंजस में फंसा हुआ था, उसके पास अरुण को बचा सकने का कोई साधन न था, क्रेकर बाइक था कोई जेट तो नहीं जो उड़कर उसे पकड़ लेता।

तभी उसने जो देखा उसकी आँखें, हैरत से चौड़ी होती चली गईं। अरुण अब तक काफी नीचे जा चुका था, मगर अब भी खाई बहुत गहरी नजर आ रही थी, अरुण की कार अनियंत्रित होते हुए एक बड़े चट्टान से टकरा गई। कार का बोनट बुरी तरह पिचक गया, कार लहराते हुए खाई में गिरने लगी। यह देखकर अनि ने क्रेकर के साथ तेजी से नीचे उतरने लगा।

कार के साथ गिरते हुए अरुण के चेहरे पर गजब की मुस्कान थी, हालांकि उस टक्कर से उसके चेहरे पर काफी हल्की चोटें आई थी मगर उसे इन सबकी परवाह ही कब थी। वह कार के पिछली सीट की ओर गया और फिर लहराते हुए फ्रंट के कांच से टकराते हुए काँच तोड़कर बाहर निकल गया। अधिक भार के कारण कार तेजी से खाई की ओर बढ़ने लगी, नीचे गिरते ही उसमें एक धमाका हुआ, वह कार धू-धू कर जलने लगी।

अरुण भी बहुत तेजी से नीचे गिर रहा था, अब भी उसके होंठों पर गजब की मुस्कुराहट बरकरार थी। वह लगभग जमीन को छू ही लेने वाला था कि तभी उसके हाथ में एक बेल आ गयी। वह उसे पकड़कर झूलता हुआ, दूसरी बेल के पास आया और उसे पकड़कर झूलता हुआ लगभग किनारे पर आ गया था मगर वह बेल थोड़ी कमजोर थी, अरुण तेजी से खाई के उसी किनारे पर गिरने लगा। उसने किनारे को पकड़ा मगर वहां की मिट्टी थोड़ी भुरभुरी थी जिस वजह से किनारा टूट गया, अरुण तेजी से नीचे गिरने लगा। तभी दो मजबूत हाथों ने उसे थाम लिया, वह अनि था। अरुण ने बेलों पर झूलने में काफी वक्त लगा दिया था जिस वजह से अनि उस तक पहुंच गया था।

"तुम्हें मरने से डर नहीं लगता क्या?" अनि ने उसे घूरते हुए पूछा।

"डर तो जीने से लगना चाहिए मेरे दोस्त! मौत का क्या है, उसे तो एक दिन आनी ही है।" अरुण के चेहरे पर अब भी गजब की मुस्कान थी, जैसे वह पहले से जानता था कि उसे कुछ नहीं होगा।

"अभी अभी साक्षात विनाश द्वार से लौटे हैं, फिर भी भाषण गजब….!" अनि ने मुँह बिचकाया और उसे ऊपर खींच लिया।

"वो यमद्वार होता है! और वहां मैं अक्सर जाकर लौट आया करता हूँ।" अरुण ने अपने हाथों को लहराते हुए कहा।

"हाँ वहीं! जो भी कोई द्वार हो मिस्टर बर्बादी!" अनि ने व्यंग्यात्मक स्वर में कहा।

"तुम्हारे पास बाइक्स का शोरूम है क्या?" अरुण की नजर क्रेकर पर गयी। "निहायती घटिया बाइक लग रही!"

"भूलो मत! आज इसी बाइक की वजह से बचे हो तुम।" अनि ने उसे घूरते हुए कहा।

"क्या सच में!" अरुण मन्द मंद मुस्कुरा उठा। अनि ने खाई की ओर झांका तो वह मात्र कुछ ही गहरी थी जिससे अरुण का कोई खास नुकसान होना सम्भव नहीं होता।

"मैं बेकार में परेशान हुआ इन सब के लिए! आप अपनी लीलाएं जारी रखिये मिस्टर बर्बादी!" अनि ने ऐसे कहा जैसे उसे बहुत बड़ा धोखा मिला हो।

"तुम बेकार में परेशान होते रहो, अब मैं चला.. मुझे उस पागल कुत्ते से मेरा हिसाब बराबर करना है।" अरुण का चेहरा तमतमा उठा।

"कुत्ते से हिसाब बराबर करने के चक्कर में उसे काट न लेना मिस्टर बर्बादी! वरना बरबाद हो जाओगे।" अनि ने हाथो को नचाते हुए नसीहत देने के अंदाज़ में कहा।

"मुझे तुम्हारी यह घटिया भाषा बिल्कुल नहीं पसंद!" अरुण वहां से दूर जाने लगा।

"हिंदी ही तो है यार!" अनि ने मुँह बिचकाया।

"हिंदी नहीं! तुम्हारें बोलने का यह तरीका… निहायती घटिया है ये!" अरुण ने उसे घूरते हुए कहा।

"मुझे तो यही पसन्द है जी, अब आपको नहीं पसन्द हम क्या करें..! लूट गए बर्बाद हो गए, इरशाद हो गए गम क्या करें..!" अनि ने रोनी सूरत बनाते हुए कहा।

"और हाँ उससे भी घटिया है तुम्हारी ये शायरी..! मेरे सामने जितना हो सके मुँह बन्द ही रखना।" अरुण भड़का।

"नहीं रखेंगे! आपका क्या जाता है… हमारा मुँह है.. हमारा नम है, हम बोलें चाहें ना बोलें..!" कहता हुआ अनि वहीं जमीन पर फैल गया।

"करो जो तुम्हारी मर्ज़ी! बस मेरे सामने आने की गलती मत करना!" अरुण गुर्राया। यह देखकर अनि की मुस्कान चौड़ी हो गयी।

"हम तो गलती कर चुके हैं सनम..!" अनि ने मधुर आवाज में गाते हुए कहा। अरुण अब समझ चुका था कि यह किसी की नहीं सुनने वाला।

"एक बार उस कुत्ते को दोज़ख पहुँचा दूँ फिर अपना मुँह मुझसे बचाकर रखना।" अरुण ने वार्निंग देते हुए कहा।

"वाह! मजा आ गया।" अनि छोटे बच्चे की तरह खिलखिलाकर हँसते हुए जमीन पर लोटने लगा। अरुण समझ नहीं पा रहा था कि उसने कौन सा जोक मारा था जो ये इतने जोर जोर से हँसने लगा।

"ठीक है! अब चलोगे यहां से..!" अरुण उसकी बातों से बोर होकर बोला।

"मुझे भी जंगल में तपस्या करके सन्यासी बनने का कोई शौक नहीं है।" अनि उठकर खड़े होते हुए अपने कपड़ों को झाड़ते हुए कहा।

"अब एक भी फालतू बात की तो गोली मार दूंगा! यहां से चलो जल्दी।" अरुण को अब फिर गुस्सा आने लगा था।

"आप भी नासाज हो गए यार मिस्टर बर्बादी! चलिए चलते हैं।" अनि ने मुँह लटकाकर कहा। "क्रेकर…!"

अनि की आवाज सुनते ही क्रेकर अपने आप स्टार्ट होकर उनके पास चला आया, अरुण यह देखकर थोड़ा हैरान जरूर हुआ मगर उसे यह किसी अजूबे जैसा नहीं लगा। हाँ उसका नाम क्रेकर, यह उसे बहुत अजीब जरूर लग रहा था। वह अनि के पीछे बैठ गया।

"चलें!"  अरुण के बैठते ही अनि बोला। "अब उस कुत्ते की बारात शमशान घाट भी तो लेकर जानी है..!"

क्रमशः…...


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2 Comments

Niraj Pandey

12-Nov-2021 09:42 AM

बहुत ही जबरदस्त

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🤫

11-Nov-2021 11:39 PM

आगे क्या होता है इंतजार रहेगा

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